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लाईव्ह न्यूज :

जयंती विशेष - मिर्झा गालिब यांच्या टॉप 10 शायरी

By महेश गलांडे | Published: December 27, 2020 4:44 PM

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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक, कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
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बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
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बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना, आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना
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दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ, मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
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हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
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कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़, पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
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हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
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काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब', शर्म तुम को मगर नहीं आती
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उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है
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आज मिर्झा गालिब यांची जयंती, त्यांना भावपूर्ण श्रद्धांजली
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इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब' कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
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