कारगिल विजय दिवस - जो शहीद हुये है उनकी, जरा याद करो कुर्बानी... By ऑनलाइन लोकमत | Published: July 26, 2020 09:03 PM 2020-07-26T21:03:59+5:30 2020-07-26T21:19:34+5:30
कारगिल युद्धात भारताने विजय मिळविला, त्यास आज रविवार, २६ जुलैला २१ वर्षे पूर्ण होत आहेत. या २१ वर्षांत पाकिस्तानने भारतात अनेक अतिरेकी कारवाया केल्या, परंतु रणांगणात भारत पाकिस्तानला कायम वरचढ ठरला आहे.
कारगिल युद्धात शहीद झालेल्या भारतमातेच्या वीर सुपुत्रांना आदरांजली वाहण्याचा आजचा दिवस. जरा याद करो कुर्बाणी... असे म्हणत आपण या शहदींना मानवंदना देतो. देशभक्तीसाठी आपलं बलिदान देणाऱ्या या वीरपुत्रांना चित्रपटातून शायरीद्वारे आदरांजली वाहण्यात आली आहे. देशसेवेसाठी त्यांचा जज्बाही आपल्याला या शायरीतून दिसून येतो.
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान हैं आँखें - साहिर लुधियानवी - फिल्म- आंखें (1968)
दम निकले इस देश की खातिर बस इतना अरमान है एक बार इस राह में मरना सौ जन्मों के समान है - प्रेम धवन - शहीद (1948)
कन्धों से कंधे मिलते हैं, कदमों से कदम मिलते हैं, हम चलते हैं जब ऐसे तो, दिल दुश्मन के हिलते हैं -जावेद अख़्तर (2004)
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं - शकील बदायूनी - लीडर (1964)
वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो पुकारते हैं ये ज़मीन-ओ-आसमां शहीद हो - राजा मेहंदी अली खां - फिल्म- शहीद(1948)
हमने सदियों में ये आज़ादी की नेमत पाई है सैंकड़ों कुर्बानियाँ देकर ये दौलत पाई है - शकील बदायूनी - लीडर (1964)
ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का इस देश का यारों क्या कहना, ये देश है दुनिया का गहना - साहिर लुधियानवी - नया दौर (1957)
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है । - बिस्मिल अज़ीमाबादी - शहीद (1948)
यों खड़ा मक़्तल में कातिल कह रहा है बार-बार क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है । - बिस्मिल अज़ीमाबादी - शहीद (1948)
पहरेदार हिमालय के हम, झोंके हैं तूफ़ान के सुनकर गरज हमारी सीने फट जाते चट्टान के - गोपालदास "नीरज" -प्रेम पुजारी (1970)
वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा रहेगी जब तलक दुनिया, यह अफ़साना बयाँ होगा -आनंद बक्षी -फूल बने अंगारे (1963)
देकर अपना खून सींचते देश की हम फुलवारी बंसी से बन्दूक बनाते हम वो प्रेम पुजारी - गोपालदास "नीरज" -प्रेम पुजारी (1970)
हर करम अपना करेंगे ऐ वतन तेरे लिए दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई हमवतन हमनाम हैं जो करे इनको जुदा मज़हब नहीं इल्जाम है -आनंद बक्षी -करमा (1986)
जिन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर जान देने की रुत रोज आती नहीं -कैफी आज़मी -हकीकत (1964)